प्रणय मिश्रा द्वारा
कोरबा /कटघोरा :— शासकीय ज़मीन को अपनी पुश्तैनी संपत्ति समझने वाले “रसूखदार” की असलियत एक बार फिर उजागर हुई है। नगरपालिका क्षेत्र अंतर्गत कसनिया निवासी शंकर लाल अग्रवाल का नाम अब चरनोई (घास) भूमि घोटाले के सबसे बड़े खिलाड़ियों में जुड़ चुका है। आरोप है कि शंकर लाल ने महज 0.95 डिसमिल निजी ज़मीन होने के बावजूद करीब 2.90 एकड़ शासकीय भूमि, जिसमें नदी किनारे की जमीन और चरनोई ज़मीन शामिल है, पर अवैध कब्जा कर दुकान, गोदाम और आलीशान मकान खड़ा कर दिया है।
शिकायत से खुला राज – जमीन निकली चरनोई, कब्जा निकला फर्जी!
प्राप्त दस्तावेज़ों के अनुसार:
खसरा नंबर 312/1/ख – 0.392 हेक्टेयर निजी रिकॉर्ड में
लेकिन 312/1/क और 312/1/ग – 0.688 और 0.093 हेक्टेयर शासकीय चरनोई भूमि के रूप में दर्ज
इन सभी सरकारी ज़मीनों पर शंकर लाल द्वारा अवैध निर्माण कर मकान व गोदाम किराए पर दिए जा रहे हैं, जिससे काली कमाई का जाल फैला हुआ है। शिकायतकर्ता अधिवक्ता चंदन बघेल ने इस घोटाले की शिकायत एसडीएम पौड़ी उपरोड़ा, कलेक्टर कोरबा, राजस्व मंत्री और प्रभारी मंत्री तक पहुंचाई है।शिकायतकर्ता ने उठाई मांग फर्जीवाड़ा कर बनाई गई मिशल की हो जांच, दर्ज हो एफआईआर ।
चंदन बघेल ने मांग की है कि:
जिन खसरा नंबरों की ज़मीन शंकर लाल के नाम दिखाई दे रही है, उनकी मिशल, रिकॉर्ड और अधिकार अभिलेखों की जांच हो। चरनोई भूमि पर अवैध कब्जे को लेकर आपराधिक प्रकरण दर्ज हो।
शासकीय भूमि को व्यापारिक प्रतिष्ठान और निजी मकान में बदलने वाले इस “नटवरलाल” के खिलाफ सख्त कानूनी कार्रवाई हो।
नक्शा पास और डायवर्शन पर भी बड़ा सवाल – क्या नगरपालिका भी मिली हुई है ।
वार्ड क्रमांक 14 के खसरा नंबर 337/1/ख (0.20 डिसमिल) में जो करोड़ों की लागत से आलीशान मकान बना है, वह भी अधिकांशतः शासकीय भूमि पर ही बना हुआ पाया गया है। मकान के निर्माण के पहले नक्शा पास, डायवर्शन और नगरपालिका की अनापत्ति प्रमाण-पत्र की प्रतिलिपि सूचना के अधिकार के तहत मांगी गई है। शक जताया जा रहा है कि नगरपालिका ने जानबूझकर आंखें मूंद रखी हैं या फिर संलिप्तता है।चरनोई भूमि पर नहीं हो सकता कब्जा – फिर कैसे हुआ नामांतरण ।
राजस्व नियमों के अनुसार, चरनोई (घास) भूमि न पंजीयन योग्य होती है, न पट्टे में दी जा सकती है। लेकिन शंकर लाल ने 312/1/ख खसरा को फर्जी तरीके से अपने नाम पर चढ़वाया और उस पर निर्माण कर प्रशासन की आंखों में धूल झोंक दी। यह सिर्फ अतिक्रमण नहीं, राजस्व दस्तावेजों के साथ संगठित फर्जीवाड़ा है।
अब बॉल प्रशासन के पाले में कार्यवाही होगी या रसूख के आगे झुकेगा तंत्र। कटघोरा का यह मामला अब प्रशासन के लिए लिटमस टेस्ट बन गया है। क्या जिला प्रशासन रसूखदार के कब्जे से शासकीय भूमि को मुक्त कराएगा? या फिर इस फर्जीवाड़े को भी सिस्टम की चुप्पी निगल जाएगी।
अब देखना होगा कि जिला प्रशासन इस चरनोई भूमि घोटाले पर कितनी तेज और निष्पक्ष कार्रवाई करता है, या फिर यह मामला भी “फाइलों की कब्रगाह” में दफन हो जाएगा।